जलपाईगुड़ी : भूत चतुर्दशी की रात को भूतों का रूप धारण बच्चो ने सबको डराने कीे बजाय मनोरंजन किया । जलपाईगुड़ी के एसजेडीए कंपोजिट कॉम्प्लेक्स स्थित आवास पर बुधवार की रात भूतिया माहौल बन गया था। भूत चतुर्दशी की रात बच्चों और युवाओं की इस अनोखी भूत की वेशभूषा को देखने के लिए सैकड़ों लोग शामिल हुए। शकचुन्नी, मुर्दाघर भूत समेत कई तरह के भूत का शो देखकर आठ से अस्सी वर्ष तक के लोग बेहद खुश हुए। भूत चतुर्दशी के अवसर पर घरवाले स्वयं अपनी इच्छानुसार भूतों का श्रृंगार करते हैं और सबके सामने भूतिया माहौल प्रस्तुत करते हैं। विज्ञान की प्रगति और जागरूकता अभियानों की बदौलत लोग अंधविश्वास से मुक्त हो रहे हैं। इसका असर उन बच्चों और किशोरों पर देखा जा सकता है। नई पीढ़ी के लिए भूत-प्रेत एक मजेदार खेल से ज्यादा कुछ नहीं मानती हैं।
कार्यक्रम के माध्यम से आप बच्चों और किशोरों की गतिविधियों को देख कर सभी लोगों ने खूब आनंद उठाया। आपको बता दें कि पश्चिम बंगाल में लोग दिवाली की शाम को देवी काली की पूजा करते हैं, जिसे “काली पूजा” के नाम से भी जाना जाता है। यहां दिवाली की बात करें तो जिस दिन देश ‘छोटी दिवाली’ मनाता है, उस दिन पश्चिम बंगाल के लोग अपने खास ‘हैलोवीन’ अंदाज में ‘भूत चतुर्दशी’ मनाते हैं. यह काली पूजा से एक दिन पहले मनाया जाता है। हिंदू कैलेंडर के अनुसार, यह दिन कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को पड़ता है और घर से बुरी आत्माओं या भूतों को दूर करने के लिए मनाया जाता है।
भूत चतुर्थी के दिन बंगाल के लोग सुबह जल्दी उठते हैं और सूर्योदय से पहले स्नान करते हैं। इसके बाद शाम को एक विशेष पूजा का आयोजन किया जाता है, जिसमें घर पर भगवान यमराज, मां काली, भगवान कृष्ण, भगवान शिव, भगवान हनुमान और भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। इस दिन लोग भूत-प्रेतों की शांति के लिए प्रार्थना करते हैं और विशेष अनुष्ठान करते हैं। इस दिन बुरी आत्माओं को दूर करने के लिए शाम होते ही घरों में 14 मिट्टी के दीपक जलाए जाते हैं, जिन्हें ‘चोड्डो प्रोदीप’ कहा जाता है। इन दीपकों को दरवाजे, खिड़कियों के बाहर, तुलसी के पौधों के पास और अन्य स्थानों पर रखा जाता है।